पत्रकारिता: पत्रकारिता! कहां गई पैनी नजर, क्यों दम तोड़ गए सोर्स?
सूबे के एक जिले में खाकी-तस्करों के गठजोड़ को पटाक्षेप करने की पटकथा 'ख़ाकी' के ही एक मातहत कर्मचारी ने लिखी तो सोर्स के नाम के दम भरने वाले 'पतलकार' भी पर्दे के पीछे से निकल आए और लंबे चौड़े लेख लिखकर खुद को पाक घोषित करने में लग गए।

राजा जाणी
सूबे के एक जिले में खाकी-तस्करों के गठजोड़ को पटाक्षेप करने की पटकथा 'ख़ाकी' के ही एक मातहत कर्मचारी ने लिखी तो सोर्स के नाम के दम भरने वाले 'पतलकार' भी पर्दे के पीछे से निकल आए और लंबे चौड़े लेख लिखकर खुद को पाक घोषित करने में लग गए। अरे! पतलकारों आप तो खुद के तगड़े सोर्स होने का दम भरते थे ना? तो जब 'लाइन' चल रही थी तो आपको भनक क्यों नहीं लगी? ईमानदारी से कार्य करने वाले मातहतों को जब एक-एक करके फील्ड से हटाया जा रहा था, तब आप कहां थे? उस समय आपका मौन रहना, कई सवाल खड़े कर रहा है। जब कोई मामला जनता के सामने आने पर आप उस पर चंद लाइन लिखकर ईमानदारी की डींगें हांकते हुए सिस्टम पर सवाल खड़े करते हो तो अब जनता को भी आप पर सवाल खड़े करने का अधिकार है। हां, यह सही है कि इस एपिसोड में आप पर कोई छींटे नहीं है लेकिन यह दम तोड़ती पत्रकारिता की ओर इशारा जरूर है। हालांकि, कुछ कर्तव्यनिष्ठ पत्रकारों ने समय-समय पर अपनी लेखनी से कप्तान के काले कारनामों को जनता के सामने लाने का प्रयास किया, उनको मेरा #सेल्यूट। किसी काले कारनामों से पर्दा हटने के बाद उस पर लिखना कोई बड़ी बात नहीं है। उन काले कारनामों से पर्दा हटाना बड़ी बात है। आज इस पर लिखने का तो बहुत कुछ मन था, लेकिन फिर कभी। फिलहाल, मेरे शब्दों को यहीं विराम देता हूं। कृपया मेरे इन शब्दों को किसी व्यक्ति विशेष से जोड़कर आकंलन नहीं करे, इसे सिस्टम से जोड़कर विश्लेषण करके अपनी राय जरूर साझा करें।