पार्टियों से अंत में टिकट पाकर, पहुंचे प्रथम नागरिक बनने की कगार पर
पार्टियों से अंत में टिकट पाकर, पहुंचे प्रथम नागरिक बनने की कगार पर

फर्स्ट राजस्थान @ जालोर
वो कहावत है न कि "" कर्म तेरे अच्छे तो है किस्मत तेरी दासी है, नीयत तेरी अच्छी है तो घर में मथुरा काशी है"" यही कहावत चरितार्थ होने जा रही है निकाय चुनाव के अंतिम दौर में। पार्षदों के चुनाव के बाद अब सभापति पद के लिए होने जा रहे चुनाव में दोनों पार्टियों के उम्मीदवारों के साथ भी कुछ ऐसा ही वाकया गुजरा। दरअसल जिन्हें सभापति का उम्मीदवार बनाया है, उनको पार्टी पदधिकारियों ने तो पहले पार्षद टिकट के लिए भी उचित नहीं समझा था, लेकिन कहावत है भाग्य में लिखा टल नहीं सकता। यही कुछ इन दोनों उम्मीदवारों के साथ हो रहा है। हालांकि इन दोनों में से सभापति कौन बनेगा, यह अभी भविष्य के गर्भ में है, लेकिन यह तय है कि सभापति पद का उम्मीदवार बनने के बाद अब इनके राजनीति भविष्य की नई राह खुल गई है। आपको बता दे कि भाजपा ने वार्ड 18 से विजयी हुए गोविंद टांक को सभापति पद के लिये उम्मीदवार बनाया है। जबकि कांग्रेस ने वार्ड 31 से विजयी हुए राजेन्द्र सोलंकी को उम्मीदवार बनाया है।

भाजपा के लिए वार्ड तो यही था, लेकिन चेहरा कोई और…
हालांकि घोषणा तो नहीं की गई थी, लेकिन भाजपा ने तो वार्ड 18 को ही पहले सभापति पद के लिए तैयार किया था। लेकिन उस दौरान चेहरा कोई और था। भाजपा की ओर से वार्ड 18 से भागीरथ गर्ग को यहां से टिकट दी जा रही थी, जो अन्दरूनी रूप से बीजेपी के सभापति पद के लिए गर्ग ही प्रोजेक्ट थे, जिस कारण एक बार तो गोविंद टांक टिकट की दौड़ से बाहर हो गए थे, लेकिन टिकट घोषणा के अंतिम दिन किस्मत पलटी और टिकट सूची में गोविंद का नाम शामिल हो गया। गोविंद की किस्मत भी इतनी तेज हुई कि न केवल टिकट पाई बल्कि अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित सभी सीट पर भाजपा के अन्य प्रत्याशी सभी हार गए। लिहाजा भाजपा के पास एक मात्र गोविंद ही विकल्प रहे। अब गोविंद शहर का प्रथम नागरिक (सभापति) बनने से केवल एक कदम दूर है।

दो दिग्गजों की लड़ाई में मार ली बाजी
कांग्रेस ने राजेन्द्र सोलंकी को सभापति के लिए उम्मीदवार बनाया है। यहां भी नजारा भी कुछ ऐसा ही रहा। राजेन्द्र सोलंकी पार्षद पद के लिए वार्ड 31 से टिकट पाने के प्रयास में थे,लेकिन यहां मंजू मेघवाल ग्रुप और रामलाल मेघवाल समूह के बीच टिकट पाने की होड़ चल रही थी। जिस कारण राजेन्द्र सोलंकी तो टिकट सूची से ही बाहर हो चुके थे। शहर में सभापति पद एससी आरक्षित होने की वजह से इन दोनों का विवाद जयपुर तक पहुंचा तो आलाकमान ने दोनों को किनारे करते हुए राजेन्द्र सोलंकी पर अंतिम समय में दांव खेला। अंतिम समय मे वार्ड 31 से टिकट पाकर राजेन्द्र भी खुशी से झूम उठे, लेकिन नामांकन दाखिल प्रक्रिया देखी तो सामने 15 और खड़े हो गए। माथे पर चिंता की लकीरें खींच गई। किसी को मनुहार करके बिठाया गया, लेकिन अंत समय में आठ जनों के बीच मुकाबला हुआ, यहाँ भाजपा के बजाय निर्दलीयों से मुकाबला करते हुए भी राजेन्द्र जीतने में सफल हुए। यही जीत राजेन्द्र को सभापति पद का उम्मीदवार बनाने में कारगर साबित हुई। हालांकि शहर की 40 में से कांग्रेस के पास 14 सीट ही है जबकि बीजेपी के पास 18ब सीट है। जिस कारण कांग्रेस के लिए जीत थोड़ी मुश्किल है, लेकिन राज्य में कांग्रेस सरकार होने से निर्दलीय का झुकाव इनकी तरफ हुआ तो इन्हें फायदा मिल सकता है। फिलहाल सोलंकी भी शहर का प्रथम नागरिक बनने से केवल एक कदम दूर है।