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“शिक्षा मंत्री से मुलाकात करने वाला ‘डिग्री घोटाले का आरोपी’! राजकुमार राणा की बीजेपी नेताओं से लगातार मुलाकातें

शिक्षा का क्षेत्र किसी भी देश के भविष्य की नींव होता है। इसलिए इस क्षेत्र से जुड़ी हर गतिविधि पर जनता की पैनी नजर रहती है। ऐसे में जब देश के शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान जैसे वरिष्ठ नेता किसी ऐसे व्यक्ति से मिलते हैं, जिस पर फर्जी डिग्रियां बेचने जैसे गंभीर आरोप हों, तो सवाल उठना स्वाभाविक हो जाता है।

धर्मेंद्र प्रधान और राजकुमार राणा की मुलाकात – क्या सिर्फ शिष्टाचार?

हाल ही में केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान आबूरोड स्थित ब्रह्माकुमारी संस्था के राष्ट्रीय शिक्षाविद सम्मेलन में पहुंचे। इस दौरान माधव विश्वविद्यालय के चेयरमैन डॉ. राजकुमार राणा ने उनसे शिष्टाचार मुलाकात कर विश्वविद्यालय की उपलब्धियों का बखान किया। शिक्षा मंत्री ने भी उनके कार्यों की सराहना करते हुए कहा कि “माधव विश्वविद्यालय जैसे संस्थान भारत की नई शिक्षा नीति को जमीनी हकीकत बना रहे हैं।”

लेकिन क्या मंत्री महोदय को यह जानकारी थी कि जिन डॉ. राजकुमार राणा से वे मिल रहे हैं, उन पर देश के सबसे बड़े फर्जी डिग्री घोटालों में से एक में गंभीर आरोप हैं? क्या यह केवल एक ‘शिष्टाचार मुलाकात’ थी या फिर इससे शिक्षा मंत्रालय की गंभीरता और सतर्कता पर भी सवाल उठते हैं?

राजकुमार राणा – एक फर्जी साम्राज्य का किंगपिन

राजकुमार राणा का नाम फर्जी डिग्री घोटाले में बहुत पहले से चर्चित रहा है। वे मानव भारती विश्वविद्यालय (शिमला) और आबूरोड के पास माधव विश्वविद्यालय के संचालन से जुड़े रहे हैं। जांच एजेंसियों के अनुसार, उन्होंने और उनके नेटवर्क ने बिना परीक्षा कराए, बिना कक्षाएं आयोजित किए, लाखों रुपए में फर्जी डिग्रियां बेचीं।

एसआईटी की जांच में खुलासा हुआ कि:

आंसर शीट्स बिना जांचे ही डिग्रियां बांटी गईं।
बंद हो चुके कोर्सों की भी डिग्रियां वितरित कर दी गईं।
प्रत्येक फर्जी डिग्री का यूनिक कोड नंबर बनाया गया ताकि स्टाफ पहचान सके कि किसे फर्जी डिग्री देनी है।
देशभर में एजेंटों का जाल फैलाकर लाखों-करोड़ों रुपए कमाए गए।
1500 से अधिक फर्जी डिग्रियां, फर्जी स्टांप, कंप्यूटर और अन्य दस्तावेज बरामद हुए।
यह कोई छोटा-मोटा मामला नहीं है, बल्कि एक संगठित घोटाला था जिसने शिक्षा क्षेत्र की साख को भारी नुकसान पहुंचाया।

फर्जी साम्राज्य का विस्तार – माधव विश्वविद्यालय भी लपेटे में

मानव भारती विश्वविद्यालय का मामला सामने आने के बाद जांच के दौरान माधव विश्वविद्यालय का नाम भी प्रमुखता से सामने आया। बिना जांची आंसर शीट्स, फर्जी डिग्रियां, फर्जी स्टांप और अन्य सबूत सिरोही जिले में स्थित इस विश्वविद्यालय से भी बरामद किए गए।

जब मामला तूल पकड़ने लगा तो राणा ने सारे फर्जी दस्तावेज और डिग्रियां माधव विश्वविद्यालय मंगवा लीं ताकि उन्हें छिपाया जा सके। मगर पुलिस और एसआईटी ने वहां भी छापेमारी कर घोटाले का पर्दाफाश कर दिया।

कानूनी शिकंजा और राणा की चालाकी

जब गिरफ्तारी की तलवार लटकने लगी तो राणा ने अपने परिवार को ऑस्ट्रेलिया भेज दिया और खुद अग्रिम जमानत की कवायद में जुट गया। हालांकि आखिरकार उसे भी गिरफ्तार कर लिया गया।

वर्तमान में, प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) भी इस घोटाले की परतें खोल रही है और शुरुआती जांच में करोड़ों के अवैध लेन-देन और संपत्तियों का पता चला है।

तो आखिर शिक्षा मंत्री की मुलाकात के मायने क्या हैं?

जब पूरा देश शिक्षा व्यवस्था में पारदर्शिता, गुणवत्ता और नैतिकता की बात कर रहा है, तब केंद्रीय शिक्षा मंत्री की ऐसे घोटालेबाज से मुलाकात चिंता का विषय है। भले ही इसे ‘शिष्टाचार मुलाकात’ कहा जाए, लेकिन यह तस्वीरें और बयान सार्वजनिक छवि को नुकसान पहुंचाते हैं और एक बड़ा सवाल खड़ा करते हैं:

क्या मंत्री महोदय को ऐसे विवादित व्यक्ति से दूर नहीं रहना चाहिए था? क्या ऐसी मुलाकातों से फर्जी शिक्षा माफियाओं को वैधता नहीं मिलती?

जनता को चाहिए जवाब

देश में शिक्षा के क्षेत्र में सुधार के लिए जितने भी प्रयास हो रहे हैं, वे तभी सफल होंगे जब शिक्षा माफिया जैसे तत्वों को पूरी तरह से बहिष्कृत किया जाएगा। एक ऐसे व्यक्ति से मुलाकात जो शिक्षा को व्यापार बनाकर बेचने का आरोपी हो, यह संकेत देता है कि कहीं न कहीं सिस्टम में चूक हो रही है।

आज जरूरत है पारदर्शिता की, सजगता की और यह सुनिश्चित करने की कि शिक्षा के मंदिरों को भ्रष्टाचार के अड्डे न बनने दिया जाए।

वरना भविष्य में कोई भी घोटालेबाज ‘शिष्टाचार’ के नाम पर शिक्षा व्यवस्था की गरिमा को ठेस पहुंचा सकता है।

भाजपा नेताओं से नजदीकियों पर उठे सवाल
आरोपी व्यक्ति ने राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्र, मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा और केन्द्रीय मंत्री गजेन्द्रसिंह शेखावत से मुलाकात की।
इन मुलाकातों ने राजकुमार राणा की राजनीतिक पहुँच और प्रभाव जमाने की कोशिशों पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।

सिरोही से गणपत सिंह मांडोली की रिपोर्ट

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