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महावीर जयंती: अहिंसा, सत्य और अपरिग्रह की प्रेरणा, हजारों अनुयायी जुटे प्रमुख जैन तीर्थों में

  • चैत्र त्रयोदशी को भगवान महावीर का जन्मोत्सव मनाया जा रहा है। इस मौके पर जैन तीर्थस्थलों पर कलशाभिषेक और रथयात्रा का आयोजन किया जा रहा है।
  • महावीर स्वामी के पांच सिद्धांत आज भी समाज को मार्गदर्शन देते हैं। महावीर का “जीवो और जीने दो” का संदेश सह-अस्तित्व को बढ़ावा देता है।
Mahavir Jayanti Celebrations in Jain Temples, जैन मंदिरों में महावीर जयंती उत्सव

भारत की धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं में महावीर जयंती का विशेष स्थान है। चैत्र माह की त्रयोदशी को मनाया जाने वाला यह पर्व भगवान महावीर के जन्मोत्सव का प्रतीक है। जैन समाज के लिए यह दिन भक्ति और श्रद्धा से परिपूर्ण होता है, लेकिन उनकी शिक्षाएं सभी धर्मों और समाजों के लिए समान रूप से प्रेरणास्रोत हैं।

देशभर के जैन मंदिरों में हुआ भव्य आयोजन

इस दिन जैन मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना का आयोजन किया गया, जिसमें कलशाभिषेक, प्रवचन, भक्ति संगीत और रथयात्रा प्रमुख रहे। प्रमुख जैन तीर्थस्थलों जैसे पालीताना, दिलवाड़ा मंदिर, श्रवणबेलगोला, और रणकपुर में हजारों श्रद्धालु एकत्र हुए। भक्तों ने भगवान महावीर के जीवन और शिक्षाओं को स्मरण करते हुए शांति और संयम का संदेश दिया।

महावीर स्वामी के पांच सिद्धांत: समाज के लिए प्रेरणा

महावीर स्वामी ने अपने जीवन के माध्यम से मानवता के लिए पांच महत्वपूर्ण सिद्धांत दिए, जो आज भी मार्गदर्शक हैं:

  1. अहिंसा: हर जीव के प्रति करुणा और संवेदनशीलता।
  2. सत्य: सच्चाई के मार्ग पर चलने की प्रेरणा।
  3. अस्तेय: बिना अनुमति किसी की संपत्ति न लेना।
  4. ब्रह्मचर्य: संयम और आत्मनियंत्रण का अभ्यास।
  5. अपरिग्रह: भोग-विलास से दूर रहते हुए संतोष का जीवन।

इतिहास में महावीर स्वामी की अमिट छाप

भगवान महावीर का जन्म 599 ईसा पूर्व में वैशाली के निकट कुंडग्राम में हुआ। राजसी जीवन छोड़कर 30 वर्ष की आयु में उन्होंने वैराग्य का मार्ग अपनाया और कठोर तप के बाद केवलज्ञान प्राप्त किया। उनके विचार जातिवाद और सामाजिक विषमता को खत्म करने के लिए आज भी प्रासंगिक हैं।

समाज पर महावीर स्वामी का प्रभाव

महावीर स्वामी का “जीवो और जीने दो” का सिद्धांत सह-अस्तित्व और भाईचारे को प्रोत्साहित करता है। उनकी शिक्षाएं सामाजिक समरसता और नैतिकता को मजबूत करती हैं। इस जयंती पर अनुयायियों ने उनकी शिक्षाओं को दोहराते हुए आत्मिक शांति और समाज के कल्याण का संकल्प लिया।

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