-“जब हम सत्ता के करीब थे, तभी सांप ने डसा”:— राठौड़
-2008 और 2018 में मुझे भी सांप ने डसा:— मदन राठौड
-आखिर कौन है इनको डसने वाला सांप ?

जयपुर, 12 अक्टूबर। राजधानी के कांस्टिट्यूशनल क्लब में रविवार को भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व प्रदेशाध्यक्ष डॉ. सतीश पूनियां की किताब (Satish Poonia’s book release) ‘अग्निपथ नहीं जनपथ’ (Janpath, not Agneepath) का लोकार्पण कार्यक्रम आयोजित हुआ। इस अवसर पर पूर्व मंत्री राजेंद्र राठौड़ के सांप-सीढ़ी वाले तंज ने पूरे समारोह को हल्के-फुल्के अंदाज़ में सियासी गर्मी दे दी।
राठौड़ बोले – “जब हम सत्ता के करीब थे, तभी सांप ने डसा”
पूर्व उपनेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ ने पूनियां की किताब (Satish Poonia’s book release) की सराहना करते हुए कहा, “राजनीति एक सांप-सीढ़ी का खेल है। सतीश जी, आपको और मुझे सांप ने तब डसा जब हम सत्ता के शीर्ष के बेहद करीब थे।”
इस बयान पर जहां दर्शकों ने ठहाके लगाए, वहीं नेताओं ने सियासी संकेतों की पड़ताल शुरू कर दी।
राठौड़ ने हल्के अंदाज़ में कहा कि, “अब तो सतीश जी किताब (Janpath, not Agneepath) लिख रहे हैं, और मैं आलेख। जब मेरे 51 आलेख पूरे हो जाएंगे, तब मैं भी पुस्तक निकालूंगा – लेकिन शर्त है कि उसके विमोचन पर आप मुझे गुलाब जी के साथ मंच पर लाना।”
जूली ने पूछा – “वो सांप कौन था?”
नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली ने भी मंच से व्यंग्य कसते हुए कहा,“मुझे भी यह जानने में दिलचस्पी है कि वो सांप कौन था जो सत्ता के करीब पहुंचते ही डस गया।”
जूली ने तंज में यह भी जोड़ा कि मंच गैर-राजनीतिक था, लेकिन राजनीतिक सांप-सीढ़ी का खेल साफ नजर आया।
BJP की अंदरूनी राजनीति भी बनी चर्चा का केंद्र
कार्यक्रम में बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष मदन राठौड़ ने भी मंच से कहा,“मुझे भी सांप ने डसा है। मैं 2003 में विधायक बना, इसके बाद 2008 में सांप ने डसा, 2013 में फिर से विधायक बना लेकिन 2018 में एक बार फिर सांप ने डस लिया। इस बयान ने बीजेपी की भीतरी गुटबाज़ी की चर्चाओं को और हवा दे दी।
पूनियां ने कहा – राजनीति में ज्ञान, संवाद और संवेदना ज़रूरी
लेखक डॉ. सतीश पूनियां ने बताया कि “राजनीति में यह धारणा गलत है कि नेता पढ़े-लिखे नहीं होते। किताब मेरे विधायक कार्यकाल का लेखा-जोखा है – संघर्ष, संवाद और जनसेवा की कहानी।” उन्होंने यह भी बताया कि उनकी अगली किताब में छात्र राजनीति से लेकर पर्दे के पीछे की कहानियां होंगी।
बरजी बाई भील की भावुक बात – “बकरियां चराते-चराते बनी जिला प्रमुख”
भीलवाड़ा की जिला प्रमुख बरजी बाई भील ने मंच से कहा, “संविधान की बदौलत ही मैं बकरियां चराते-चराते यहां तक पहुंची हूं। किताबों के ताले जब खुले, तभी हम जैसे लोगों को आगे बढ़ने का अवसर मिला।”



