- पूर्व विधायक संयम लोढा ने गोशाला को जनहित की संस्था नहीं मानने के राजस्व मंत्री हेमंत मीना के बयान को असंवैधानिक बताया।
- लोढा ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर मंत्री के खिलाफ विशेषाधिकार हनन की कार्रवाई की मांग की।
- मंत्री मीना ने विधानसभा में चारागाह भूमि के आवंटन को व्यापक जनहित के लिए जरूरी बताया था।

राजस्थान विधानसभा में राजस्व मंत्री हेमंत मीना के एक बयान ने नया विवाद खड़ा कर दिया है। 12 मार्च को प्रश्नकाल के दौरान, मीना ने कहा कि गोशालाओं के लिए चारागाह भूमि का आवंटन व्यापक जनहित में नहीं माना जा सकता, इसलिए वर्तमान में ऐसी भूमि गोशालाओं को नहीं दी जा रही।
इस बयान पर पूर्व विधायक और पूर्व मुख्यमंत्री के सलाहकार संयम लोढा ने कड़ा ऐतराज जताया है। लोढा ने मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा को पत्र लिखकर मीना के खिलाफ कार्रवाई की मांग की, इसे राजस्थान काश्तकारी (सरकारी) नियम 1955 और उच्च न्यायालय के निर्णयों का उल्लंघन बताया।
मंत्री का बयान और उच्च न्यायालय के निर्णय में टकराव
लोढा ने अपने पत्र में बताया कि मीना ने विधानसभा में गुलाब कोठारी की जनहित याचिका (सं. 1554/2004) का हवाला देते हुए कहा कि राजस्थान उच्च न्यायालय ने 12 जनवरी 2017 को चारागाह भूमि को व्यापक जनहित में आवंटित करने का आदेश दिया था। इसके अलावा, राजस्व विभाग ने 21 जनवरी 2022 को अतिरिक्त महाधिवक्ता अनिल मेहता से गोशालाओं को गोचर भूमि आवंटन के लिए राय मांगी थी।
मेहता ने 24 फरवरी 2022 को जवाब दिया कि गोशालाएं जनहित की संस्था नहीं हैं, जिसके आधार पर गोशालाओं को भूमि आवंटन रोक दिया गया। लोढा ने इस राय को उच्च न्यायालय के निर्णयों और मौजूदा कानूनों के खिलाफ बताया, जिसमें गोशालाओं को जनहित की संस्था मानकर भूमि आवंटन के निर्देश दिए गए हैं।

विशेषाधिकार हनन का आरोप, कार्रवाई की मांग
लोढा ने दावा किया कि राजस्व मंत्री का बयान न केवल राजस्थान काश्तकारी नियम 1955 के प्रावधानों के खिलाफ है, बल्कि उच्च न्यायालय के विभिन्न निर्णयों की भी अवमानना करता है। उन्होंने कहा कि केवल अतिरिक्त महाधिवक्ता की राय को आधार बनाकर विधानसभा में गलत जानकारी देना सदन के सदस्यों को गुमराह करने के समान है।
लोढा ने इसे विशेषाधिकार हनन की श्रेणी में रखते हुए मुख्यमंत्री से मंत्री मीना के खिलाफ उचित कार्रवाई की मांग की है। उन्होंने उच्च न्यायालय के उन निर्देशों का भी उल्लेख किया, जिनमें गोशालाओं को जनहित की संस्था मानकर गोचर भूमि आवंटन की बात कही गई है।
राजस्व विभाग के परिपत्र और कानूनी स्थिति
लोढा ने अपने पत्र में राजस्व विभाग के संशोधनों और परिपत्रों का हवाला दिया, जो गोशालाओं को गोचर भूमि आवंटन के लिए जनहित की संस्था मानते हैं। उन्होंने कहा कि उच्च न्यायालय ने समय-समय पर इस मुद्दे पर स्पष्ट निर्देश दिए हैं, जिन्हें नजरअंदाज कर मंत्री ने गलत बयान दिया। यह विवाद अब राजस्थान की सियासत में चर्चा का विषय बन गया है, क्योंकि गोशालाएं राज्य की सांस्कृतिक और सामाजिक पहचान का अहम हिस्सा हैं।
आगे क्या?
यह मामला राजस्थान विधानसभा और सरकार के लिए एक नई चुनौती बन सकता है। लोढा की मांग और उनके द्वारा उठाए गए कानूनी बिंदुओं ने राजस्व मंत्री के बयान को कटघरे में ला खड़ा किया है। अब सबकी नजर इस बात पर है कि मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा इस मुद्दे पर क्या कदम उठाते हैं और क्या राजस्व विभाग अपने रुख पर पुनर्विचार करता है।