- भीनमाल में सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के बावजूद बड़े पैमाने पर अवैध बजरी खनन हो रहा है।
- खानपुर गांव में माफियाओं ने श्मशान भूमि तक को नहीं छोड़ा, चारदीवारी तोड़ी।
- शक के आधार पर युवक पर हमला, माफियाओं ने आर्थिक नुकसान की भरपाई की मांग की।

भीनमाल उपखंड क्षेत्र में सर्वोच्च न्यायालय के स्पष्ट आदेशों के बावजूद जमकर अवैध बजरी खनन और परिवहन हो रहा है। इसे रोकने में खनिज विभाग, पुलिस और जिला प्रशासन नाकाम साबित हो रहे हैं। स्थिति यह है कि यदि बजरी माफियाओं को किसी पर संदेह हो जाए कि उसने उनके ट्रैक्टर या ट्रॉली की सूचना प्रशासन को दी है, तो उस व्यक्ति की पिटाई तय मानी जाती है।
ऐसा ही एक मामला हाल ही में भीनमाल थाने में दर्ज हुआ है, जिसमें बजरी माफियाओं ने एक युवक की सिर्फ इस शक में पिटाई कर दी कि उसने बजरी से लदे ट्रैक्टर-ट्रॉली को पकड़वाने में भूमिका निभाई। इस घटना से स्पष्ट होता है कि बजरी माफिया किस हद तक बेलगाम हो चुके हैं। हालांकि पुलिस ने मामला दर्ज कर जांच शुरू कर दी है।
इंसानियत शर्मसार: माफियाओं ने श्मशान भूमि को भी नहीं बख्शा
भीनमाल थाना क्षेत्र के खानपुर गांव में बजरी माफियाओं ने नदी के साथ-साथ गांव की श्मशान भूमि तक को नहीं छोड़ा। यहां भी अवैध खनन जारी है। स्थिति इतनी भयावह है कि श्मशान की चारदीवारी तक को तोड़ दिया गया है।
स्थानीय लोगों का कहना है कि उन्होंने कई बार प्रशासन से इसकी शिकायत की, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। इससे ग्रामीणों को शंका है कि प्रशासन और माफियाओं की मिलीभगत हो सकती है।
शक मात्र में भी कर देते हैं मारपीट
बजरी माफियाओं के आतंक का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि अगर उनका कोई ट्रैक्टर पकड़ा जाए या सूचना लीक हो जाए, तो जिस पर भी उन्हें शक होता है, उसकी बेरहमी से पिटाई कर दी जाती है। इतना ही नहीं, माफिया उस व्यक्ति से हुए आर्थिक नुकसान की भरपाई की भी मांग करते हैं, और इंकार करने पर जान से मारने की धमकियां देने से भी नहीं चूकते।
खानपुर निवासी युवक से मारपीट
प्राप्त जानकारी के अनुसार, खानपुर निवासी खेताराम पुत्र सवाराम चौधरी ने भीनमाल थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई है। खेताराम के अनुसार, वह 1 अप्रैल को खानपुर से कोटकास्ता जा रहा था, तभी पहले से घात लगाकर बैठे जबरसिंह पुत्र बलवंतसिंह, पिंटूसिंह पुत्र जबरसिंह और विपुलसिंह पुत्र जबरसिंह ने उस पर हमला कर दिया। उन्होंने खेताराम को पीटते हुए कहा कि “एक सप्ताह पहले तुमने हमारे ट्रैक्टर को पकड़वाया, जिससे हमें ₹1.27 लाख का नुकसान हुआ है, यह पैसा तुम्हें देना होगा, वरना जान से मार देंगे।”
सूत्रों की मानें तो खेताराम ने ऐसी कोई शिकायत की ही नहीं थी। इसके बावजूद सिर्फ शक के आधार पर उस पर हमला कर दिया गया। यह घटना इस कहावत को चरितार्थ करती है – “सैंया भए कोतवाल, तो डर काहे का?” यानी माफियाओं को यदि पुलिस या प्रशासन का संरक्षण प्राप्त हो, तो वे किसी से नहीं डरते।
सूचना लीक होना भी गंभीर सवाल खड़ा करता है
यदि खेताराम ने वास्तव में किसी ट्रैक्टर की सूचना पुलिस को दी भी थी, तो यह जानकारी माफियाओं तक कैसे पहुंची? आमतौर पर पुलिस अपने मुखबिर की पहचान गोपनीय रखती है। ऐसे में यह आशंका गहराती है कि कहीं थाने के किसी कर्मचारी ने यह सूचना लीक तो नहीं की?
यदि ऐसा है, तो यह न केवल बेहद गंभीर मामला है, बल्कि इससे भविष्य में अपराधियों के खिलाफ सूचना देने वालों की सुरक्षा भी खतरे में पड़ सकती है। देखना यह होगा कि जिले के पुलिस अधीक्षक इस मामले में क्या कार्रवाई करते हैं, या फिर यह भी ‘ढाक के तीन पात’ बनकर रह जाएगा।