- प्रदूषण प्रमाण पत्र (पीयूसी) अवैध: मुख्यमंत्री सहित कई मंत्रियों और विधायकों के वाहनों के पीयूसी प्रमाण पत्र की अवधि समाप्त हो चुकी है।
- पर्यावरण संरक्षण की अनदेखी: जिम्मेदार पदों पर बैठे लोग पर्यावरण संरक्षण के प्रति लापरवाह नजर आ रहे हैं।
- आमजन में रोष: इस खुलासे के बाद पर्यावरण प्रेमियों और आम जनता में गहरा रोष व्याप्त है।
गणपतसिंह मांडोली/गौरव मित्तल की एक्सक्लुसिव रिपोर्ट

केंद्र और राज्य सरकारें प्रदूषण रोकने के लिए लगातार नए कानून बना रही हैं, लेकिन इन्हीं कानूनों का पालन जिम्मेदार लोग ही नहीं कर रहे। फर्स्ट राजस्थान की पड़ताल में चौंकाने वाली सच्चाई सामने आई है।
मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा से लेकर डिप्टी सीएम और परिवहन मंत्री प्रेमचंद बैरवा समेत कई मंत्रियों और विधायकों के वाहनों के प्रदूषण प्रमाण पत्र (पीयूसी) की जांच की गई। नतीजा यह निकला कि अधिकांश वाहनों के पीयूसी न केवल अवैध हैं बल्कि कुछ वाहनों की पीयूसी तो सालों से रिन्यू भी नहीं करवाई गई है।
यह स्थिति दिखाती है कि जो नेता और मंत्री आम जनता से पर्यावरण के प्रति जागरूक होने की अपील करते हैं, वे खुद इस मुद्दे को कितना गंभीरता से लेते हैं। पढ़िए पूरी रिपोर्ट-

भजनलाल शर्मा- मुख्यमंत्री
प्रदेश के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा के सरकारी वाहन (रजिस्ट्रेशन नंबर: आरजे-14-यूएफ-6174) का प्रदूषण प्रमाण पत्र 28 मई 2024 को ही एक्सपायर हो चुका है। लेकिन, राज्य के मुखिया होने के बावजूद उन्होंने अपने वाहन का पीयूसी नवीनीकरण करवाना जरूरी नहीं समझा।
ये मामला उस गंभीरता पर सवाल उठाती है, जो पर्यावरण संरक्षण को लेकर बड़े-बड़े दावे करने वाले मुख्यमंत्री और उनकी सरकार से उम्मीद की जाती है। जब प्रदेश के शीर्ष पद पर बैठा व्यक्ति ही नियमों का पालन नहीं करेगा, तो आम जनता से नियमों की पालना की अपेक्षा कैसे की जा सकती है?
प्रेमचंद बैरवा- उपमुख्यमंत्री व परिवहन विभाग मंत्री
प्रदेश के उपमुख्यमंत्री और परिवहन विभाग के मंत्री प्रेमचंद बैरवा के सरकारी वाहन (रजिस्ट्रेशन नंबर: आरजे-14-युके-3651) का प्रदूषण प्रमाण पत्र भी लंबे समय से अवधिपार हो चुका है। इसके बावजूद, वाहन का पीयूसी नवीनीकरण करवाने की जरूरत नहीं समझी गई। परिवहन विभाग के मंत्री जो लोगों को यातायात नियमों की पालना का पाठ पढ़ाते नजर आते हैं खुद नियमों के प्रति कितने गंभीर हैं यह इस बात का प्रमाण है।

जोगेश्वर गर्ग-मुख्य संचेतक विधानसभा
राजस्थान विधानसभा के मुख्य संचेतक जोगेश्वर गर्ग का सरकारी वाहन जिसका रजिस्ट्रेशन नंबर आरजे-14-युके-3937 हैं। वाहन का प्रदूषण प्रमाण पत्र पिछले दिनों ही अवधिपार हुआ हैं लेकिन अब तक इसका नवीनीकरण नहीं करवाया गया हैं।
अविनाश गहलोत- सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री
प्रदेश के सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग के मंत्री अविनाश गहलोत ने अपने नाम पर टाटा कंपनी की सफारी स्टॉर्म कार ले रखी हैं जिसका रजिस्ट्रेशन नंबर आरजे-14-यूएच-5006 हैं। इसका प्रदूषण प्रमाण पत्र 05 मई 2024 को अवधिपार हो चूका हैं। करीब साल बीत गया लेकिन मंत्री जी ने पीयूसी को रिन्यूअल नहीं करवाया हैं।
संजय शर्मा- वन एवं पर्यावरण मंत्री
संजय शर्मा के पास वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन विभाग का जिम्मा हैं और वो हमेशा पर्यावरण संरक्षण और जागरूकता को लेकर बातें किया करते हैं लेकिन वो खुद पर्यावरण के प्रति कितने संजीदा हैं इसका अंदाजा उनके वाहन स्कार्पियो जिसका रजिस्ट्रेशन नंबर आरजे-02-यूबी-0505 हैं जिसका प्रदूषण प्रमाण पत्र 05 दिसंबर 2024 को अवधिपार हो चूका हैं लेकिन मंत्री जी की उदासीनता के चलते इसका नवीनीकरण नहीं करवाया गया हैं।
सुरेश रावत- जल संसाधन मंत्री
प्रदेश के जल संसाधन मंत्री सुरेश रावत ने अपनी पत्नी के नाम पर गाड़ी ले रखी हैं जिसका रजिस्ट्रेशन नंबर आरजे-14-वीसी-2359 हैं। वाहन का प्रदूषण प्रमाण पत्र 21 मार्च 2020 को अवधिपार हो चुका हैं लेकिन मंत्री जी ने वाहन की पीयूसी का नवीनीकरण नहीं करवाया हैं।
ओटाराम देवासी: पंचायती राज, ग्रामीण विकास और आपदा प्रबंधन मंत्री
प्रदेश के पंचायती राज, ग्रामीण विकास और आपदा प्रबंधन मंत्री ओटाराम देवासी के सरकारी वाहन संख्या आरजे-14-युके-3647 जिसका प्रदूषण प्रमाण पत्र भी काफी दिनों पूर्व अवधिपार हो चुका हैं लेकिन उन्होंने भी इसका नवीनीकरण करवाने में दिलचस्पी नहीं दिखाई।
समाराम गरासिया- विधायक पिंडवाड़ा-आबू
पिंडवाड़ा-आबू से भाजपा विधायक समाराम गरासिया की स्कार्पियो गाड़ी जिसका रजिस्ट्रेशन नंबर आरजे-24-यूए-5501 हैं। विधायक के वाहन का प्रदूषण प्रमाण पत्र भी 31 जनवरी 2022 को अवधिपार हो चुका हैं लेकिन विधायक ने पीयूसी का नवीनीकरण करवाने की जहमत नहीं उठाई।
छगनसिंह राजपुरोहित- आहोर विधायक
जालोर के आहोर विधानसभा सीट से भाजपा विधायक छगनसिंह राजपुरोहित की इनोवा कार का रजिस्ट्रेशन नंबर आरजे-14-यूएल-1511 हैं।विधायक के वाहन का भी प्रदूषण प्रमाण पत्र अवधिपार हुए करीब एक साल बीत चुका हैं लेकिन विधायक ने पीयूसी का नवीनीकरण नहीं करवाया हैं।
ट्रैफिक लाइट पर आमजन की तरह रुककर खूब बटोरी वाहवाही
प्रदेश के मुख्यमंत्री भजनलाल ने ऐतिहासिक फैसला किया था कि आमजन की तरह उनका काफ़िला भी ट्रैफ़िक लाईट यानी लाल बत्ती होने पर चौराहो पर रुकेगा। मुख्यमंत्री की ओर से किए गए इस फैसले से आमजन को काफी राहत मिली। पहले वीआईपी मुवमेंट की वजह से घंटो जाम लग जाता था जिससे गंभीर मरीजों समेत आमजन को खासी दिक्क़त होती थी लेकिन उनके इस फैसले के बाद आमजन में सीएम भजनलाल की काफी प्रशंसा हुई थी।
यह फैसला कर उन्होंने वीवीआईपी और वीआईपी कल्चर पर पूरी तरह से विराम लगा दिया था लेकिन ठीक इससे उलट प्रदूषण प्रमाण पत्र के मामले में मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा के सरकारी वाहन भी अवधिपार होने से सीएम के वीवीआईपी कल्चर को खत्म करने की बात पर स्वालिया निशान खड़े करता हैं।
क्या है पीयूसी यानी पोल्यूशन अंडर कंट्रोल ?
पीयूसी यानी प्रदूषण प्रमाण पत्र वाहन से निकलने वाले धुएं की जांच कर यह सुनिश्चित करता हैं कि संबंधित वाहन वायु प्रदूषण की तय सीमाओं के भीतर हैं। यह हर वाहन के लिए आवश्यक होता हैं और बिना वैध पीयूसी सर्टिफिकेट के वाहन चलाना कानूनन अपराध हैं।
पर्यावरण प्रेमियों में रोष
सीएम, डिप्टी सीएम और मंत्रियों समेत विधायकों के वाहनों की पीयूसी अवधिपार होने की बात सामने आने के बाद पर्यावरण प्रेमी और आम लोग नाराज हैं। उनका कहना है कि अगर जिम्मेदार लोग ही पर्यावरण को नुकसान पहुंचाएंगे, तो आम जनता से इसे बचाने की उम्मीद करना बेकार है। एक तरफ ये लोग पर्यावरण बचाने की बड़ी-बड़ी बातें करते हैं, और दूसरी तरफ उनके वाहनों की ये हालत दिखाती है कि वो खुद इस मुद्दे को लेकर कितने गंभीर हैं।
कोविड-19 के समय साफ हवा की अहमियत सबने समझी थी, लेकिन इसके बावजूद ऐसी लापरवाही करना समझ से बाहर है। उन्होंने लोगों से अपील की कि पर्यावरण को बचाने में सभी का साथ जरूरी है। आज के समय में हर किसी को पर्यावरण को लेकर जागरूक होना और हरित सोच अपनाना बेहद जरूरी है।
वायु प्रदूषण के चलते वर्ष 2024 में 21 लाख मौतें-
आपको जानकर हैरानी होंगी दुनिया में होने वाली हर आठ मौत में से एक मौत का कारण वायु प्रदूषण होता हैं। वायु प्रदूषण को तंबाकू जैसे खतरनाक जानलेवा से भी कई ज्यादा खतरनाक बताया गया हैं।
स्टेट ऑफ़ ग्लोबल एयर 2024 की रिपोर्ट बताती हैं कि भारत में वायु प्रदूषण की वजह से हर साल 21 लाख मौते हो रही हैं।
एयर क्वालिटी इंडेक्स (एक्यूआई) क्या है?
जानकारों की माने तो प्रदूषण के स्तर को एयर क्वालिटी इंडेक्स (एक्यूआई) से मांपा जाता हैं।यह ऐसा नंबर होता हैं जिससे हवा की गुणवत्ता के बारे में जानकारी मिलती हैं। एक्यूआई को 8 मानको से तय किया जाता हैं जिनमें पीएम 10,पीएम 2.5,एनओं 2,एसओं 2,सीओं 2,ओं 3 और एनएच 3 पीबी होते हैं। 24 घंटे के दौरान हवा में इनकी मात्रा की हवा की गुणवत्ता को तय करती हैं।
एक्यूआई का स्तर 100 तक सामान्य माना जाता हैं। इससे ज्यादा एक्यूआई स्तर होने पर अस्थमा और फेफड़ों के मरीजों को जोखिम बढ़ जाता हैं।
300 से ज्यादा होने एयर क्वालिटी बहुत खराब मानी जाती हैं।इससे लोगों को स्वास सम्बंधी समस्या होने लगती हैं…विश्व स्वास्थ्य संगठन ने एयर क्वालिटी इंडेक्स और वैल्यू स्टैण्डर्ड को 6 केटेगरी में बांटा हैं…
बढ़ता एक्यूआई मतलब खतरा…
पिछले साल की बात करें तो एक बार प्रदेश की राजधानी जयपुर समेत कई शहर जहरीली हवा के हॉट स्पॉट बन गए थे।जयपुर सहित प्रमुख तीन शहरों की हवा बेहद खराब स्तर को पार गई थी।
यह सब वायु प्रदूषण की वजह से हुआ था ऐसे में वायु प्रदूषण को रोकने के लिए सामूहिक प्रयास करने होंगे ताकि आने वाली पीढ़ी को बेहतर वातावरण मिल सके।
0-50 बेहतर हवा: अच्छा सांस लेने लायक
- 51-100 संतोषजनक स्तर: सेंसेटिव लोगों को सांस लेने में दिक्क़त आ सकती हैं।
- 101-200 मध्यम स्तर:अस्थमा और दिल के मरीजों के लिए यह स्तर खतरनाक
- 201-300 खराब स्तर: लगभग सभी लोगों के लिए सांस लेने में दिक्क़त
- 301-400 बहुत खराब स्तर: सांस और फेफड़ों की बीमारियों का खतरा
- 401-500 गंभीर: बीमार लोगों को गंभीर खतरा, सेहतमंद लोग भी हो सकते हैं बीमार