गीत और कहानियां लिखने वाला साहित्यकार खुद कोरोना की कड़वी कहानी बना, मुंबई छोड़ गांव में कर रहा मजदूरी

गीत और कहानियां लिखने वाला साहित्यकार खुद कोरोना की कड़वी कहानी बना, मुंबई छोड़ गांव में कर रहा मजदूरी

गणपतसिंह मांडोली 9929420786

फ़र्स्ट राजस्थान @ सिरोही

यह कहानी है एक ऐसे युवा की जो छोटे से गांव में जन्मा और फिर अपने ख्वाबों को बुनते बुनते मुंबई महानगर जा पहुंचा। बहुत छोटी उम्र में जिसने बड़े बड़े शब्द गढ़ना सीख लिया। शब्द गढ़ता गया। कहानियां रचता गया और गीत लिखता गया। एक- दो नहीं दर्जनों किताबें लिख डाली।

राजस्थानी संगीत को जिंदा रखने के लिए एलबम बना डाले। जितना छोटा गांव, जितनी छोटी उम्र। उतने ही बड़ा शहर, उतने ही बड़े सपने, लेकिन यह कहीं रुका नहीं, झिझका नहीं। आगे बढ़ता गया। अच्छी पहचान बनाई। शब्दों से खेलता खेलता उद्घोषक बना। कहानियां रचता रचता साहित्य रतन बना। मुंबई की चंकाचौंध में हर बड़ी शख्सियत तक पहुंचा।

रतन टाटा से लेकर सचिन तेंदुलकर तक। सरस्वती की कृपा थी इसलिए वह बना जो बनना चाहता था। कहानीकार। वक्त की विडंबना देखिए, आज यह खुद एक कहानी बन गया है। कोरोना संकट की कड़वी कहानी। ऐसी कहानी जिसे आप सुनेंगे तो यकीन नहीं करेंगे। यह हकीकत आपको पहली बार में तो कहानी ही लगेगी, लेकिन यकीन कीजिए यह हकीकत ही है। कोरोनो संकट की हजारों दिल दुखा देने वाली हकीकतों में से एक हकीकत। यह युवा आज साहित्य छोड़ मनरेगा मजदूरी करने के लिए मजबूर है।

सिरोही जिले में छोटा सा गांव रोहिडा। ठेठ आदिवासी। इसी गांव के रहने वाले दिनेश्वर माली। उम्र कोई 33 साल। स्कूल के समय से ही साहित्य में रुचि थी। सो कहानियां लिखने लगे। मंच संचालक करने लगे। छोटे से गांव से निकल और मुंबई जा पहुंचे। कई कार्यक्रमों में मंच संचालन करने लगे। मुंबई के नालासोपरा में रहते रहते दर्जनों गाने लिख दिए। उनके वीडियो व एलबम रिलीज हुए। कविता, गीत, गजल और भजन से जुड़ी मारवाड़ी और हिंदी में करीब 12 किताबें लिख डाली। जिनके लिए किसान कवि, रत्नों राजस्थान रा, राजस्थान गौरव रत्न जैसे पुरुस्कार मिले। फ़िल्म राइटर्स एसोसिएशन मुम्बई के सदस्य बने। अच्छी पहचान बनाई और देश की नामी गिरामी हस्तियों से मिलते रहे। सब कुछ अच्छा चल रहा था। करीब 12 साल पहले मुंबई गए दिनेश्वर ने वहां शुरुआत हजार रुपए महीना नौकरी से की थी। धीरे धीरे खुद की पहचान बनाई। कुछ साल पहले खुद के लिए एक फ्लैट बुक करवाया। उसकी किश्ते भरने लगे। अपना हर सपना पूरा करने के लिए दिनरात मेहनत की।

अचानक देश में आए कोरोना संकट ने मुश्किलें खड़ी कर दी। पूरे देश की तरह मुंबई शहर में सबकुछ ठप हो गया। कार्यक्रम, सम्मेलन आदि बंद हो गए। दिनेश्वर के सामने भी संकट खड़ा हो गया। आर्थिक संकट। जिसके कारण मुंबई में एक दिन भी रहना मुश्किल ही है। दिनेश्वर ने इसका भी सामना करने की कोशिश की। नई शुरुआत की। कोरोना पर एक किताब लिखने लगे। नाम दिया कोरोना की 21 कहानियां।

….विडंबना देखिए, कोरोना की कहानियां लिखते लिखते दिनेश्वर खुद उसका एक किरदार बन गए। सब कुछ ठप हो गया तो मुंबई छोड़ गांव लौटना पड़ा। रोजगार का संकट सिर पर था। सो गांव में मनरेगा के लिए आवेदन किया। कोरोना पर कहानियां लिखने वाले दिनेश्वर आज खुद उस कहानी के एक किरदार हैं। एक ऐसा किरदार जो गांव में चारागाह विकास के लिए मजदूरी कर रहा है। मनरेगा पर मजदूरी। साथ में पत्नी भी। दोनों पति पत्नी मजदूरी कर इस संकट को भूलने की कोशिश कर रहे हैं। दिनेश्वर बताते हैं कि काम कोई छोटा बड़ा नहीं होता। कल दूसरा दौर था आज दूसरा। हर वक्त हमारी भूमिकाएं और पहचान बदलती रहती है। इसलिए उन्हें यह काम करने में कोई हिचक नहीं है।

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